आरती >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड
दो०- कद्रू बिनतहि दीन्ह दुखु, तुम्हहि कौसिलाँ देब।
भरतु बंदिगृह सेइहहिं, लखनु राम के नेब।।१९।।
भरतु बंदिगृह सेइहहिं, लखनु राम के नेब।।१९।।
कद्रू ने विनताको दुःख दिया था, तुम्हें कौसल्या देगी। भरत
कारागार का सेवन करेंगे (जेल की हवा खायेंगे) और लक्ष्मण राम के नायब
(सहकारी) होंगे॥१९॥
कैकयसुता सुनत कटु बानी।
कहि न सकइ कछु सहमि सुखानी॥
तन पसेउ कदली जिमि काँपी।
कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी॥
कहि न सकइ कछु सहमि सुखानी॥
तन पसेउ कदली जिमि काँपी।
कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी॥
कैकेयी मन्थराकी कड़वी वाणी सुनते ही डरकर सूख गयी, कुछ बोल
नहीं सकती। शरीर में पसीना हो आया और वह केले की तरह काँपने लगी। तब कुबरी
(मन्थरा) ने अपनी जीभ दाँतों-तले दबायी (उसे भय हुआ कि कहीं भविष्यका अत्यन्त
डरावना चित्र सुनकर कैकेयी के हृदय की गति न रुक जाय; जिससे उलटा सारा काम ही
बिगड़ जाय)॥१॥
कहि कहि कोटिक कपट कहानी।
धीरजु धरहु प्रबोधिसि रानी॥
फिरा करमु प्रिय लागि कुचाली।
बकिहि सराहइ मानि मराली॥
धीरजु धरहु प्रबोधिसि रानी॥
फिरा करमु प्रिय लागि कुचाली।
बकिहि सराहइ मानि मराली॥
फिर कपट की करोड़ों कहानियाँ कह-कहकर उसने रानी को खूब समझाया
कि धीरज रखो! कैकेयी का भाग्य पलट गया, उसे कुचाल प्यारी लगी। वह बगुली को
हंसिनी मानकर (वैरिन को हित मानकर) उसकी सराहना करने लगी॥२॥
सुनु मंथरा बात फुरि तोरी।
दहिनि आँखि नित फरकइ मोरी॥
दिन प्रति देखउँ राति कुसपने।
कहउँ न तोहि मोह बस अपने॥
दहिनि आँखि नित फरकइ मोरी॥
दिन प्रति देखउँ राति कुसपने।
कहउँ न तोहि मोह बस अपने॥
कैकेयी ने कहा-मन्थरा! सुन, तेरी बात सत्य है। मेरी दाहिनी आँख
नित्य फड़का करती है। मैं प्रतिदिन रात को बुरे स्वप्न देखती हूँ; किन्तु
अपने अज्ञानवश तुझसे कहती नहीं॥३॥
काह करौं सखि सूध सुभाऊ।
दाहिन बाम न जानउँ काऊ॥
दाहिन बाम न जानउँ काऊ॥
सखी! क्या करूँ मेरा तो सीधा स्वभाव है। मैं दायाँ-बायाँ कुछ भी
नहीं जानती॥४॥
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- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 1
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 2
- अयोध्याकाण्ड - मंगलाचरण 3
- अयोध्याकाण्ड - तुलसी विनय
- अयोध्याकाण्ड - अयोध्या में मंगल उत्सव
- अयोध्याकाण्ड - महाराज दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक का विचार
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक की घोषणा
- अयोध्याकाण्ड - राज्याभिषेक के कार्य का शुभारम्भ
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ द्वारा राम के राज्याभिषेक की तैयारी
- अयोध्याकाण्ड - वशिष्ठ का राम को निर्देश
- अयोध्याकाण्ड - देवताओं की सरस्वती से प्रार्थना
- अयोध्याकाण्ड - सरस्वती का क्षोभ
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का माध्यम बनना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा कैकेयी संवाद
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को झिड़कना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को वर
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मंथरा को समझाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी के मन में संदेह उपजना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की आशंका बढ़ना
- अयोध्याकाण्ड - मंथरा का विष बोना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का मन पलटना
- अयोध्याकाण्ड - कौशल्या पर दोष
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी पर स्वामिभक्ति दिखाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का निश्चय दृढृ करवाना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी की ईर्ष्या
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का कैकेयी को आश्वासन
- अयोध्याकाण्ड - दशरथ का वचन दोहराना
- अयोध्याकाण्ड - कैकेयी का दोनों वर माँगना
अनुक्रम
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